शिर्डी से इक संदेसा साईं ने मुझको भेजा
दो बरस पहले आया यह बरस मिलने आजा
वह बुलाये न जाऊं यह कभी हो सकता क्या
मैं रहा सेवक वह है मेरी किस्मत का राजा
मंदिरें बहुत देखी ऐसा मंदिर न देखा
जो क़दम रखता साईं बनता है उसका राखा
मांगे सो देता सबको साईं का प्रेम भण्डार
जीवित होके बाबा बांटता रहता है प्यार
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